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उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम लिमिटेडः- परिचयात्मक विवरण

स्थापनाः- उत्तराखण्ड शासन द्वारा समाज कल्याण विभाग के उपक्रम के रूप में उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम लि0 का गठन कम्पनी एक्ट 1956 के अन्तर्गत 25 अक्टूबर 2001 को किया गया।


अधिकृत पूंजीः- निगम की अधिकृत पूंजी 20 करोड़ है।


चुकता पूंजीः- चुकता पूँजी रू0 18.50 करोड़ है।


अंशधारकः- निगम के अंशधारक भारत सरकार एवं उत्तराखण्ड सरकार क्रमशः 49 तथा 51 प्रतिशत के अनुपात में है।


उद्देश्यः- निगम के गठन का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति, जनजाति ,पिछड़ी जाति, सफाई कर्मचारियों, स्वच्छकारों तथा विकलांगों के आर्थिक उत्थान हेतु राष्ट्रीय निगमों से सस्ती दर पर ऋण प्राप्त करना ,स्वयं के अंशपंूजी से ऋण उपलब्ध कराना तथा बैंकों के माध्यम से स्वरोजगार हेतु ऋण सुविधा प्रदान करना है।


उत्तराखण्ड बहुउदेशीय वित्त एवं विकास निगम निम्न राष्ट्रीय निगमों का राज्य चैनेलाइजिंग एजेन्सी है।

1. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एंव विकास निगम
2. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त एंव विकास निगम
3. राष्ट्रीय पिछडा वर्ग वित्त एंव विकास निगम
4. राष्ट्रीय विकलांग वित्त एंव विकास निगम
5. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एंव विकास निगम


निगम के वित्तीय संसाधनः-
निगम निम्न वित्तीय श्रोतो से योजनाओं का संचालन करता है।

1. निगम की अंशपॅूजी
2. भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति, जनजातियों हेतु दी जाने वाली विशेष केन्द्रीय सहायता
3. राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जाति, जनजातियेां के कल्याणार्थ संचालित विशिष्ट येाजनाओं हेतु आवंटित धनराशि
4. भारत सरकार के विभिन्न राष्ट्रीय निगमों से संस्थागत ऋण के रूप में ली गयी धनराशि


जीविका अवसर प्रोत्साहन योजना(अनुसूचित जाति एवं जनजाति)

                अनुसूचित जाति एवं जनजाति हेतु जीविका अवसर प्रोत्साहन योजना का क्रियान्वयन राज्य सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2004.05 से किया गया हैं । समाज कल्याण विभाग द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तिगत एवं सामूहिक रोजगार के अवसर विकसित करने हेतु इस योजना का शुभारम्भ किया गया है। उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम केन्द्र एवं राज्य सरकार का उपक्रम है। जनपद स्तर पर जिला समाज कल्याण अधिकारी निगम के जिला प्रबन्धक हैं जब कि मुख्यालय स्तर पर निगम के क्रियाक्लाप प्रबन्ध निदेशक द्वारा एक महा प्रबन्धक एवं दो उप महा प्रबन्धकों के सहयोग से सम्पादित किये जाते हैं।

  • योजना का स्वरूपः-

                अनुसूचित जाति एवं जनजाति हेतु जीविका अवसर प्रोत्साहन योजना के निम्नलिखित घटक होंगेः-

1-       सूचना संकलन ,अनुश्रवण एवं मूल्यंाकन

2-       ऋण अनुदान एवं अन्य सुविधाएं

3-       क्षमता विकास एवं कौषल वृद्धि हेतु प्रषिक्षण

 

  • ऋण हेतु पात्रताः- योजनान्तर्गत ऋण स्वीकृत करने हेतु निम्न पात्रताएं निर्धारित की जाती हैंः-

1. आवेदनकर्ता उत्तराखण्ड का निवासी होना चाहिये।

2. आयु 18 वर्ष से 50 वर्ष के मध्य होनी चाहिये।

3. मासिक आय षहरी क्षेत्र में रू 55000 वार्षिक तथा ग्रामीण क्षेत्र में रू 40000 से अधिक नहीं होनी चाहिये। ग्रामीण क्षेत्र के बी0पी0एल0 परिवारों हेतु प्रमाणपत्र खण्ड विकास अधिकारी द्वारा प्रदत्त किया जायेगा।

4. अनुसूचित जाति एवं जनजाति की पुष्टि हेतु सक्षम अधिकारी द्वारा प्रदत्त अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रमाण पत्र।

  • परियोजना लागतः-    इस योजना के अन्तर्गत परियोजना की न्यूनतम लागत रू0 50.000- एवं अधिकतम रू2.00 लाख निर्धारित की जाती है। योजना के अन्तर्गत योजना की लागत का 60 प्रतिषत बैंक ऋण तथा 30 प्रतिषत मार्जिनमनी इस योजना हेतु आवन्टित धनराषि से स्वीकृत किया जायेगा। परियोजना लागत की अवषेष 10 प्रतिषत धनराषि में अधिकतम रू10000 अनुदान तथा लाभार्थी अंष के रूप में सम्मिलित होगी। अनुदान इंबा मदकमक रूप में होगा। जिन लाभार्थियों के पास योजना से संबंधित अवस्थापना सुविधाएं उपलब्ध हैं उन्हें योजना की लागत का 50 प्रतिषत धनराषि उपरोक्त षर्तों के अनुसार कार्यषील पूंजी के लिये ऋण के रूप में 7  प्रतिषत वार्षिक ब्याज दर पर दी जायेगी।
  • ब्याज की दरः- परियोजना लागत का 30 प्रतिषत मार्जिनमनी ऋण निगम द्वारा 7 प्रतिषत वार्षिक ब्याज की दर से 60 किस्तों में वसूल किया जायेगा जब कि बैंक ऋण में बैंक की प्रचलित ब्याज दरें लागू होंगी।
  • अनुदानः-योजनान्तर्गत लाभार्थियों को अभिप्रेरित करने की दृष्टि से अनुदान की व्यवस्था की जाती है। अनुदान परियोजना लागत के सापेक्ष अधिकतम रू10.000- प्रदान किया जायेगा।
  • लाभार्थी अंषः- परियोजना के प्रति लाभार्थी के सक्रिय सहभागिता को सुनिष्चिितश्करने हेतु परियोजना लागत में लाभार्थी अंष की व्यवस्था निम्नवत की जाती हैः-

                       रू0 1.00 लाख तक की योजनाओं में-                      कुछ नहीं

                       रू1.00 से रू2.00 लाख तक की योजनाओं में-           10 प्रतिषत

  • क्षमता विकास एवं कौषल वृद्धि हेतु प्रषिक्षणः-अनुसूचित जाति एवं जनजाति के जो लाभार्थी इस योजना के अन्तर्गत लाभान्वित किये गये हैं उनको सफल स्वरोजगारी बनाने हेतु प्रषिक्षित किया जाना भी आवष्यक प्रतीत होता है। प्रषिक्षण के दो मुख्य प्रकार हैं। प्रथमतःसूचना सम्बन्धी प्रषिक्षण जिसके अन्तर्गत लाभार्थी को स्वरोजगार के प्रति अभिप्रेरित किया जाना सम्मिलित है और उसका अभिमुखीकरण किया जाना है जिसके अन्तर्गत उद्यमिता विकास भी निहित है। दूसरी श्रेणी के अन्तर्गत ऐसे लाभार्थियों की दक्षता  के स्तर में गुणात्मक परिवर्तन एवं अभिवृद्धि लाना सम्मिलित है  जिससे  उनकी  कार्यक्षमता  एवं  उत्पादकता  में  वृद्धि हो सके। प्रथम श्रेणी में सामान्यतया अल्पकालिक प्रषिक्षण सम्भव होेंगे जिसमें मुख्यतः अभिनव विकास,प्रचार-प्रसार एवं संक्षिप्त गोष्ठियां एवं सेमीनार के माध्यम से लाभार्थियों को जानकारी प्रदान की जायेगी जब कि क्षमता विकास हेतु कौषल आधारित प्रषिक्षण ;ैापसस इंेमक जतंपदपदहद्ध के अन्तर्गत तकनीकी एवं व्यवसायिक प्रषिक्षण भी सम्मिलित किये जायेंगे जो तुलनात्मक दृष्टि से अधिक अवधि के होंगे। ऐसे व्यवसायों का प्रषिक्षण दिया जायेगा जिसमें रोजगार के अच्छे अवसर हों।

 

शिल्पी ग्राम(अनुसूचित जाति एवं जनजाति) 

                उत्तराखण्ड में निवास करने वाले अनुसूचित जाति ,जनजाति  समुदाय का मुख्य साधन परम्परागत हस्त शिल्प रहा है। उत्तराखण्ड की जनसंख्या में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 17.50 प्रतिशत तथा जनजाति की जनसंख्या 3  प्रतिशत है। इन समुदायों में हस्त शिल्प पारम्परिक रूप से विकसित होता रहा और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्त शिल्प कौशल हस्तान्तरित होता रहा है। आधुनिक बाजार ,आर्थिकी तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ राजकीय सेवाओं में भागीदारी तथा आवश्यक अवस्थापना सुविधाओं के अभाव में हस्त शिल्प में संलग्न परिवार तथा उत्पाादित सामग्री की गुणवत्ता में हा्रस की स्थिति उत्पन्न हुई है। नवोदित राज्य उत्तराखण्ड में लुप्त हो रहे पारम्परिक शिल्पों को पुर्नजीवित करने तथा प्रोत्साहित करने हेतु उत्तराखण्ड शासन द्वारा शिल्पी ग्राम की एक महत्वाकांक्षी योजना आरम्भ की गई है। इससे एक तरफ पारम्परिक कौशल समाप्त होने से बचेगा वहीं उन शिल्पों में कार्यरत शिल्पी अपने कौशल के आधार पर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि हस्त शिल्प में मुख्यतः अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवार ही संलग्न हैं।

                शिल्पी ग्राम योजना अन्तर्गत शिल्प ग्रामों का सर्वेक्षण शिल्पियों का चिन्हांकन ,कुशल शिल्पी से अर्द्धकुशल तथा अकुशल शिल्पियों का प्रशिक्षण एवं शिल्पी ग्रामों में अवस्थापना विकास ,विपणन की व्यवस्था आदि समाहित की गई है।

  • योजना का उद्देश्य
  • परम्परागत शिल्पों को रोजगारपकर ,आयजनित गति विधि के रूप में विकसित करना।

सर्वप्रथम परम्परागत शिल्पों की पहचान जिनमें संलग्न शिल्पियों का चिन्हांकन करना तथा उनकी दक्षता के अनुसार कुशल एवं अकुशल की श्रेणी में वर्गीकरण करना एवं पंजीकरण करना।

  • इन शिल्पों में संलग्न परिवारों को समुचित प्रशिक्षण देना ताकि उनकी कार्यकुशलता एवं दक्षता में अभिवृद्धि की जा सके।
  • नई तकनीकों एवं डिजायनों का प्रचार एवं अनुसन्धान करना।
  • शिल्पी परिवारों को शिल्प अभिमुखीकरण प्रशिक्षण देना तथा शिल्पों के बारे में उनकी सम्पूर्ण जागरूकता स्तर की अभिवृद्धि करना।
  • कौशल प्राप्त शिल्पी की पाहचान करना तथा उसे पंजीकृत करना।
  • शिल्पियों के संबंध में आधारभूत सूचनाएं तैयार करना जिसके आधार पर वित्तपोषण ,कच्चे माल की आपूर्ति ,उत्पादित सामग्री का संकलन एवं विपणन आदि की व्यवस्था करवाना।
  • विपणन प्रोत्साहन हेतु हाट ,मेले ,प्रदर्शनी आदि में उत्पादों को विक्रय करने के लिये सुविधा प्रदान करना।
  • शिल्प एवं शिल्पकारों से संबंधित विषयों पर परिचर्चाएं ,संगोष्ठी एवं कार्य शालाएं आयोजित करना।
  • कच्चे माल के डिपो यथाः ऊन बैंक, लकड़ी बैंक की स्थापना करना। इसी प्रकार कच्चे माल के लिये गोदाम हाट इम्पोरियम बनाना।
  • शिल्पी परिवारों हेतु कल्याण निधि की स्थापना करना।
  • राज्य में गठित विभिन्न बोर्ड यथाः उत्तराखण्ड बम्बू एण्ड फाइवर डेवलपमेन्ट बोर्डशीप एण्ड वूल डेवलपमेन्ट बोर्ड के साथ योजना के क्रियान्वयन हेतु समन्वय स्थापित करना।

            इस योजना के अन्तर्गत राज्य के सभी चयनित विकासखण्ड आच्छादित होंगे। इसके लिये एक सुनियोजित एवं त्रुटिरहित सर्वेक्षण कराया जायेगा जिसे समय-समय पर अद्यावधिक किया जायेगा। इसके अतिरिक्त योजना क्रियान्वयन के अध्ययन मूल्यांकन एवं अनुश्रवण की कार्यवाही भी किया जाना आवश्यक है। क्याsकि इससे योजना की सफलता प्रगति एवं क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाईयों की जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। सर्वेक्षण अध्ययन एवं सत्त अनुश्रवण हेतु परामर्शदाताओं की नियुक्ति  विशेषज्ञ सेवाओं को प्राप्त करने शिल्प ग्रामों ,शिल्पियों एवं शिल्प परिवारों के विषय में आधारभूत डाटा एवं सूचनाएं तैयार करने तथा शिल्पियों के पहचान पत्र बनाने की भी कार्यवाही की जायेगी। योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण तीन स्तर पर दिया जायेगा। पहले जागरूकता सृजन एवं अभिमुखीकरण तत्पश्चात प्रारम्भिक प्रशिक्षण एवं व्यवसायिक प्रशिक्षण व्यवसायिक प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरान्त शिल्पियों द्वारा उत्पाादित वस्तुओं की गुणवत्ता की समीक्षा की जायेगी कि क्या प्रशिक्षार्थियों द्वारा उत्पाादित वस्तु बाजार में प्रतिस्पर्धा में टिकेगी अथवा नहीं। यदि गुणवत्ता में कमी होगी तो विशेष प्राविधान के तहत प्रशिक्षण को अधिकतम तीन माह तक और बढ़ाया जायेगा।

                उत्पादित वस्तुओं के विपणन हेतु वस्तु की कीमत बाजार की स्थितियों एवं लागत के अनुसार तय की जायेगी। उत्पादित वस्तुओं का प्रचार-प्रसार किया जायेगा। वस्तुओं के विपणन हेतु सम्भावित बाजार तथा वस्तुओं की मांग का सर्वेक्षण कराया जायेगा । शिल्पियों से विभिन्न प्रकार के नमूने प्राप्त कर उन्हें यात्रा मार्ग में पर्यटन विभाग द्वारा निर्मित केन्द्रों में प्रदर्शित किया जायेगा एवं प्रतिष्ठित आगन्तुकों को उपहार स्वरूप दिया जायेगा ताकि पर्यटकों में विक्री को बढ़ावा मिल सके एवं शिल्पी ग्राम योजना पर्यटन के साथ जुड़ सके। केन्द्रीय स्थलों पर स्थाई हाट निर्माण किया जायेगा तथा अस्थाई टैन्ट के रूप में सार्वजनिक स्थान पर भी सुविधा दी जायेगी और ऐसे स्थाई भवनों के लिए शिल्पियों से आवेदन पत्र प्राप्त किये जायेंगे अथवा शिल्पियों से ही निविदाएं आमंत्रित की जायेंगी। शिल्प उत्पादों के उत्तराखण्ड ब्राण्ड का मानकीकरण किया जायेगा। जैसेः उत्तराखण्ड ऊनी कार्पेट आदि।

तकनीकी एवं सहायक सुविधाएंः-    इसके अन्तर्गत शिल्पियों को परामर्श एवं भ्रमण कराया जायेगा जिसके तहत अन्य पर्वतीय राज्यों यथाः हिमांचल प्रदेश ,जम्मू कश्मीर ,मणिपुर अथवा ऐसे राज्यों में भ्रमण कराया जायेगा जहां हस्त शिल्प के क्षेत्र में अच्छा विकास हुआ हो और अनुसूचित जाति के शिल्पी बहुलता में हो। शिल्पियों में प्रतिस्पद्र्धा की भावना जगाने के लिये उत्कृष्ठ शिल्पियों को पुरूष्कार आदि की व्यवस्था भी की जायेगी। इसके अतिरिक्त शिल्प विकास गतिविधि आदि के संचालन राष्ट्रीय ,अन्तर्राष्ट्रीय मेलों , गोष्ठियों में इन उत्पादकों की भागीदारी सुनिष्चिितश्चत कराने हेतु आने-जाने व ठहरने की व्यवस्था निःशुल्क कराई जायेगी। इस प्रकार यातायात ,परामर्श ,भ्रमण,उत्कृष्ठता पुरूष्कार की व्यवस्था भी प्रस्तावित की जायेगी।

                व्यवसाय विकास हेतु अवस्थापना विकास एक आवश्यक शर्त है जिसमें मुख्यतः संचार सुविधा ,बिजली ,पानी ,सड़क ,कच्चे माल  एवं बाजार की सुविधा ,सामूहिक सुविधाएं, विपणन की गतिविधियों का संगठन एवं उत्पाकता वृद्धि सम्मिलित है। प्रथम चरण में दो केन्द्रीयकृत शिल्प ग्राम इम्पोरियम उपयुक्त स्थान पर खोला जाना भी प्रस्तावित है जिसके लिये रू 50 लाख प्रति केन्द्र की व्यवस्था की जायेगी।

                योजना के सफल एवं प्रभावी क्रियान्वयन के निमित्त सत्त अनुश्रवण एवं समीक्षा हेतु एक राज्य स्तरीय समीक्षा समिति का गठन प्रमुख सचिव/ सचिव , समाज कल्याण ,उत्तराखण्ड शासन की अध्यक्षता में गठित किया गया है जिसके सदस्य मुख्य अधिशासी अधिकारी , बम्बू बोर्ड , मुख्य अधिशासी अधिकारी , लाइव स्टाक डेवलपमेन्ट बोर्ड ,मुख्य अधिशासी अधिकारी ,शीप एण्ड वूल बोर्ड ,समन्वयक ,उत्तराखण्ड आॅर्गनिक बोर्ड ,प्रबन्ध निदेशक,उत्तराखण्ड बन निगम ,निदेशक, उद्योग ,महा प्रबन्धक, उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम हैं।

स्वच्छकारों एवं उनके आश्रितों की विमुक्ति एवं पुर्नवास की योजना 

                स्वच्छकारों एवं उनके आश्रितों की विमुक्ति एवं पुर्नवास की योजना भारत सरकार द्वारा 22 मार्च 1992 को प्रारम्भ की गई। जिसे वर्ष 2007 से मैनुअवल स्केवैन्जरो के पुर्नवास की स्वरोजगार योजना (ैत्डै) के रूप में संचालित की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत वह स्वच्छकार जो अपनी रोजी के लिये सर पर मैला ढोने जैसे अमानवीय एवं घृणित पैत्रिक धन्धे में लगे हैं , को इस घृणित पृथा से मुक्त कराकर सम्मानजनक वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। नव गठित उत्तराखण्ड राज्य के गठन के उपरान्त उत्तराखण्ड राज्य में भी ऐसे स्वच्छकारों को चिन्हांकित किया गया जो अभी भी इस कुप्रथा के शिकार हैं। ऐसे स्वच्छकारों की संख्या उत्तराखण्ड में 1972 चिन्हांकित किए गए जिसके सापेक्ष 1850 स्वचछकारों को प्रषिक्षण उपलब्ध कराया गया है तथा 929 स्वच्छकारों को पुनर्वासित करते हुए वैकल्पिक रोजगार प्रदान किया गया। अवषेष 1043 स्वच्छकार ऐसे पाये गये जो विभिन्न कारणों के पात्रता की श्रेणी में न आने के कारण पुनर्वासित नही किया जा सका ।

                वर्तमान में भारत सरकार से जारी नये दिषा-निर्देषों के अनुसार वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर इस राज्य में पाये गये 49 नगरीय क्षेत्रों में चिन्हित 5503 भवनों में उपलब्ध शुष्क शौचालयों में संलिप्त स्वच्छकारों के पुनर्वेक्षण का कार्य सम्पन्न किया गया। पुर्नसर्वेक्षणोपरान्त प्रदेष में कुल 131 स्वच्छकार परिवार शुष्क शौचालयों में कार्यरत पाये गये है। सवंेक्षित परिवारों की संकलित सूची भारत सरकार को प्रेषित की जा चुकी है।

 

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा संचालित योजनाएं

                राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम (अनुविनि) कम्पनी अधिनियम 1956  के धारा 25 के अधीन स्थापित कम्पनी है। निगम सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार का पूर्णतः निजी उपक्रम है जिसकी दिनांक 31मार्च 2001 को अधिकृत पूंजी रूपया 1000 करोड़ है और प्रदत्त पूंजी रूपया 411 करोड़ है । निगम का प्रबन्धन केन्द्र सरकार ,राज्य स्तरीय चैनेलाइजिंग अभिकरणों ,वित्तीय संस्थानों व अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के हित में अपनी सेवा प्रदान करने में प्रसिद्ध प्रमुख व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व में गठित निदेशक मण्डल द्वारा किया जाता है।

                राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा राज्य में अनुसूचित जाति के लिये निगम से संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम को शासन द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग अभिकरण नामित किया गया है। इस हेतु राष्ट्रीय निगम से ऋण लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा बहुउद्देशीय निगम के पक्ष में राष्ट्रीय निगम को रू 5 करोड़ की स्टेट गारन्टी भी उपलब्ध कराई गई है।